मधुबनी : संवत्सर काल का मुख्य रूप है। इसमें कुल 360 दिन-रात होते हैं। इन्हें 9-9 खंडों में बांटने से इसके तहत वर्ष भर में कुल 40 नवरात्र होते हैं। 9-9 खंडों का तात्पर्य यह है कि अखंड संख्याओं में नौ सबसे बड़ी संख्या है। जिसका प्रकृति या शक्ति से खास संबंध है। सत्व, रज व तम नाम के तीन गुण पृथ्वी हैं, जो आपस में मिले हुए त्रिवृत कहलाते हैं। जो प्रकृति का रूप है। इस तीन से एक एक विशिष्ट गुण का निर्माण होता है। प्रकृति कि तीन गुण और तीनों में एक-एक में तीनों सम्मिलित हो जाते हैं। इस तरह उक्त 40 नवरात्रों में चार नवरात्र प्रथम हैं। उनका प्रत्येक तीन-तीन मास चैत्र, आषाढ़, आश्रि्वन व पौष की शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। इन चारों माह से भिन्न-भिन्न ऋतु आरंभ होते है। इसमें भी दो चैत्र व आश्रि्वन के नवरात्र विशेष रूप से प्रचलन है। ग्रीष्म व शीत मुख्य ऋतओं के प्रारंभ होने की सूचना देने वाला है। इन ऋतुओं के प्रारंभ में प्रकृति शक्ति संपूर्ण जगत का परिवर्तन करती है। जिस कारण इस समय महाशक्ति का रूप भी प्रत्यक्ष होता है। इसलिए इसे शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण अवसर माने जाते हैं।
चैत्र व आश्रि्वन की शुरुआत में महालक्ष्मी का स्वरूप प्रत्यक्ष दिखाई देता है। इस समय नये धान्य तैयार होते हैं। जो महालक्ष्मी के पूर्णता को दर्शाता है। पूर्व में इस समय जैसी महंगाई व कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ जैसी विपदा नहीं रहती थी। जिस कारण लोग महालक्ष्मी का स्वागत को ले उत्सुक रहते थे। लोग इन नवरात्रों में जगत की शक्ति महालक्ष्मी की उपासना करना आवश्यक समझा जाता था। लोगों में यह विश्वास है कि परमशक्ति की कृपा से ही जगत में सुख समृद्धि की वर्षा होती है सो उनकी आराधना में लोग लग जाते है। इन सब कारणों से 40 नवरात्रों में ये दोनों नवरात्र महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वहीं इन दोनों नवरात्र के शुरूआत में विभिन्न प्रकार के आपदा व रोगों का प्रभाव बढ़ जाते हैं। जिस कारण भी लोग इनसे बचाव के लिए महाशक्ति की उपासना करते हैं। जिससे आरोग्य रहते हुए सुख समृद्धि घर आए।
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